Tuesday, September 25, 2018

सबसे पहले भाईचारा

राजनीतिज्ञ और राजनीतिक पार्टियां धार्मिक भावनाओं से खेलने का और उनसे राजनीतिक लाभ उठाने का मौका नहीं छोड़ना चाहतीं। पंजाब में धार्मिक मुद्दे कितने संवेदनशील होते हैं और तनिक सी चूक कितनी हानिकारक होती है और उनके प्रभाव से बाहर आने में कितनी मुश्किलें सामने आती हैं, यह सर्वविदित है। शिरोमणि अकाली दल ने अभी हाल ही में कांग्रेस सरकार पर धार्मिक भावनाओं से खेलने का आरोप लगाया है। जस्टिस रंजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट आने के बाद ऐसे नाज़ुक हालात में दोनों पार्टियां लोगों की धार्मिक भावनाओं का दोहन करना चाहती हैं। धार्मिक भावनाओं के मामले में मामूली छेड़खानी उस पंजाब में कतई उचित नहीं है, जिसके सीने में पहले से ही दर्द भरी यादें भरी हुई हैं। आरोप-प्रत्यारोपों का जो सिलसिला चल पड़ा है, वह पंजाब के जले पर नमक छिड़कने जैसे कार्य हैं। राजनीतिक पार्टियों का इस तरह का खिलवाड़ कतई जिम्मेदाराना व्यवहार नहीं कहा जा सकता। बारागाड़ी की घटनाएं और गोलीबारी ने लोगों में असंतोष पैदा कर दिया, रही-सही कसर आयोग की रिपोर्ट ने पूरी कर दी। जिसने लोगों के घावों को फिर कुरेद दिया है और इन घावों को छेड़ने के लिए दोनों राजनीतिक पार्टियां मैदान में आ गई हैं।
वहीं दूसरी ओर जब शिरोमणि अकाली दल के नेताओं का विरोध करने वाले कुछ नेताओं को लेकर हालिया घटनाएं और शिरोमणि अकाली दल के नेताओं की गाड़ियों पर पथराव से स्थिति बिग़ड़ गई, जिसे रोकने में पुलिस नाकाम रही। ऊपर से नवजोत सिंह सिद्धू की अकाल तख्त से प्रकाश सिंह बादल को बहिष्कृत करने की अपील ने दुश्वारियों को और बढ़ा दिया है। उन्होंने शांत जल में पत्थर फेंकने का काम जरूर किया है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और उनसे जुड़ी संस्थाओं पर शिरोमणि अकाली दल की पकड़ विपक्षियों, खासतौर से कांग्रेस को हमेशा ही नागवार गुजरी है। किसी भी पार्टी को धार्मिक संस्थाओं में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए। इसी वजह से उग्रवाद ने पंजाब को अपूरणीय क्षति पहुंचाई थी। राजनीतिक दल पंजाब के लोगों की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ बंद करें।हरियाणा सरकार ने शिक्षकों की अंतर्जिला तबादला नीति के साथ- साथ मोरनी एवं मेवात जैसे क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए, उन क्षेत्रों में कार्य करने हेतु, ‘प्रोत्साहन स्वरूप’ अन्य क्षेत्रों में कार्यरत शिक्षकों के मुकाबले उनके मूल वेतन तथा डीए में दस प्रतिशत अतिरिक्त वृद्धि करने का सराहनीय निर्णय लिया है। मगर साथ में यह भी शर्त लगा दी है कि उपरोक्त लाभ केवल उन्हीं शिक्षकों को मिलेगा, जिन्हें सरकार उन क्षेत्रों में भेजेगी। जो शिक्षक अपनी इच्छा से अथवा अतिरिक्त आर्थिक लाभ के प्रोत्साहन से उन क्षेत्रों में कार्य करने के लिए तैयार होंगे, उनको यह लाभ नहीं मिलेगा। सवाल है कि सरकार की मंशा क्या है।राजकुमार, राजौंद, कैथल
सम्मान करें
राष्ट्रभाषा हिंदी ओछी राजनीति और अन्य कारणों से देश में पनप नहीं पा रही है। जबकि देश की जनसंख्या का बहुत बडा भाग हिंदी पढ़-लिख और समझ सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने 1977 में अतंर्राष्ट्रीय मंच पर हिंदी का मान बढ़ाया था। माना कि विश्व प्रतिस्पर्धा और प्रतियोगिताओं के लिए अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि अपनी राजभाषा का सम्मान न करें।

Thursday, September 6, 2018

मदरसा शिक्षकों का मोदी सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा

ढाई साल से मानदेय की राह ताक रहे मदरसा शिक्षकों ने अब नरेंद्र मोदी सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है.आर्थिक संकट से जूझ रहे देशभर के मदरसा शिक्षकों ने बुधवार यानी 5 सितंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ धरना-प्रदर्शन किया.
मदरसा शिक्षकों का आरोप है कि केंद्र सरकार शिक्षकों को तय मानदेय नहीं दे रही है, जिससे अधिकांश मदरसे बंद होने की कगार पर आ गए हैं और शिक्षकों की हालत बद से बदतर होती जा रही है.
दरअसल, केंद्र सरकार स्कीम फॉर प्रोवाडिंग क्वॉलिटी एजुकेशन इन मदरसा (एसपीक्यूएम) यानी मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत पोस्ट ग्रैजुएट शिक्षकों को 12 हज़ार और ग्रैजुएट शिक्षकों को 6 हज़ार प्रतिमाह मानदेय देती है. मदरसा शिक्षकों का आरोप है कि पिछले 30 महीने से एसपीक्यूईएम योजना के तहत मिलने वाला मानदेय नहीं मिल रहा है.
इसके तहत 2016-17 के सत्र से लेकर अब तक का किसी भी शिक्षक को मानदेय नहीं दिया गया है. इससे उनकी आर्थिक स्थिति बदतर हो रही है और शिक्षक नौकरी छोड़ने को भी मजबूर हो रहे हैं.
इस्लामिक मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एजाज अहमद ने बीबीसी को बताया, "केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ग्रेजुएट शिक्षक को छह हज़ार रुपये और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षक को 12 हज़ार रुपये देती है जबकि राज्य सरकार ग्रेजुएट शिक्षक को दो हज़ार रुपये और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षक को तीन हज़ार रुपये अलग से देती है. राज्य सरकार ने अपना अंश दे दिया है, लेकिन केंद्र ने पिछले 30 महीने से अपना अनुदान नहीं दिया है. इससे शिक्षकों की भुखमरी की स्थिति आ गई है. प्रदेश के सभी मदरसा शिक्षकों की योग्यता मान्यता के अनुरूप है."
बीबीसी ने अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सैयद गय्यूर उल-हसन रिज़वी से इस विषय में पूछा.
उन्होंने कहा, "मदरसा शिक्षकों का केंद्र सरकार से पिछले 30 महीनों से मानदेय बकाया है. इसी को लेकर मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक संघ के पदाधिकारियों ने बुधवार को मुझसे मुलाकात की. मैं केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मुलाकात करके इस मसले पर चर्चा करूंगा और पूरी कोशिश करूंगा कि मदरसा शिक्षकों को उनका बकाया मानदेय मिल जाए."कीम फॉर प्रोवाइडिंग क्वॉलिटी एजुकेशन (एसपीक्यूईएम) को केंद्रीय एचआरडी मंत्रालय ने मदरसों में शिक्षा व्यवस्था में सुधार करने के उद्देश्य से मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए और यहां पढ़ने वाले बच्‍चों के भविष्य संवारने के लिए गणित, विज्ञान, अंग्रेज़ी, कंप्यूटर और सामाजिक विज्ञान जैसे विषय पढ़ाए जाने की सिफ़ारिश की थी.
मदरसा बोर्ड ने मदरसों के बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए विषयवार और कक्षावार एनसीईआरटी की किताबें पाठ्यक्रम में शामिल करने और उर्दू के साथ हिंदी और अंग्रेज़ी माध्यम में भी पढ़ाई का प्रस्ताव भेजा था. इससे पहले मदरसों में उर्दू, अरबी और फ़ारसी की ही पढ़ाई हो रही थी.
इन विषयों के लिए नियुक्ति किए जाने वाले शिक्षकों की सैलरी केंद्र सरकार के उपलब्ध कराए जाने वाले कोष से दी जाती है. इसके लिए देशभर के मदरसों के शिक्षकों को दो मानदेय के तहत पंजीकृत किया गया.
लेकिन एजाज अहमद कहते हैं, "मदरसों में एनसीईआरटी (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) के पाठ्यक्रम लागू तो कर दिए, लेकिन इसकी किताबें उपलब्ध नहीं होने से पढ़ाई प्रभावित हो रही हैं. सरकार ने मदरसों में एनसीईआरटी सिलेबस तो लागू कर दिया, लेकिन किताबें नहीं दी गईं."
मोदी सरकार ने साल 2014-15 के बजट में मदरसों में कंप्यूटरीकरण और आधुनिकीकरण के लिए 100 करोड़ रुपये की राशि का ऐलान किया था. इस योजना को पूरा करने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी.
एजाज अहमद कहते हैं, "2014 के चुनावी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मदरसा का आधुनिकीकरण करने का एजेंडा रखा था. इसके लिए उन्होंने बजट में 375 करोड़ रुपये का प्रावधान भी रखा था, लेकिन प्रकाश जावडेकर ने उसे कम कर 120 करोड़ कर दिया. यह रकम समूचे मदरसा शिक्षकों के वेतन के लिए बहुत कम है."
उन्होंने कहा, "इसी साल फरवरी में माननीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावडेकर से हमने मुलाक़ात की थी और उन्होंने एक दो महीने में मानदेय जारी कराने का आश्वासन भी दिया था, लेकिन आज तक यह जारी नहीं किया गया. उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी से भी मुलाकात की थी तो उन्होंने बताया था कि प्रदेश की सरकार ने इस बाबत केंद्र से मांग की लेकिन उन्होंने अभी तक पैसे नहीं दिए हैं."
एजाज कहते हैं, "सभी मदरसे सरकार के नियमों का पालन करते हुए आधुनिक शिक्षा दे रहे हैं. तीन-तीन बार इनकी जांच कराई गई जिसमें सभी मदरसों के खरे उतरने के बावजूद सरकार ने मानदेय नहीं दिया."